आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥
अस्तुति चालीसा शिवहि, पूर्ण कीन कल्याण ॥
भूत पिसाच निकट नहिं आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।
तुह्मरे भजन राम को पावै। जनम जनम के दुख बिसरावै।।
वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥
जन्म जन्म के पाप नसावे। अन्तवास शिवपुर में पावे॥
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥
किया तपहिं भागीरथ भारी । पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी ॥
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कहत शिवानन्द स्वामी मनवांछित फल पावे ॥ ॐ जय शिव…॥
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राम दूत अतुलित बल धामा। अंजनि-पुत्र पवनसुत नामा।।
अर्थ- हे स्वामी, इस विनाशकारी स्थिति से मुझे उभार लो यही उचित अवसर। अर्थात जब मैं इस समय आपकी शरण में हूं, मुझे अपनी भक्ति में लीन कर मुझे मोहमाया से मुक्ति check here दिलाओ, सांसारिक कष्टों से उभारों। अपने त्रिशुल से इन तमाम दुष्टों का नाश कर दो। हे भोलेनाथ, आकर मुझे इन कष्टों से मुक्ति दिलाओ।
कठिन भक्ति देखी प्रभु शंकर। भये प्रसन्न दिए इच्छित वर॥